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मध्यप्रदेश की राजनीती में आजादी के बाद से ही दो दलों का प्रभाव रहा है १९५१ के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के निकटम प्रतिद्वंदी किसान मजदूर प्रजा पार्टी दुसरे स्थान पर रही बाद के चुनाव में भारतीय जनसंघ फिर भारतीय जनता पार्टी अस्तित्त्व में आई हलाकि रामराज्य परिषद् भी शुरुआत नजर आई बाद बामपंथी सोसलिस्ट बहुजन समाजवादी पार्टी ने विभिन्न क्षेत्रो में आपनी पकड़ बनाई किन्तु कोई भी दल इतनी ताकत हासिल नहीं कर पाया की प्रदेश की राजनीती को प्रभावित कर सके २००३ के चुनाव में गोंडवाना क्षेत्र में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने ताकत दिखाई लेकिन महज तीन सीट जीत पाई कम्न्युसित पार्टी ने एक सीट हासिल की 2008 के चुनाव में समाजवादी पार्टी यूपी के नेता दीपक यादव के नेत्र्तव में चुनाव में आई जो महज अपनी patni को विधायक बनाने में कामयाबी हासिल कर पाई बसपा ने सत्ता पर कब्ज़ा करने का सपना देखा महज सात सीट जीत पाई फॉरवर्ड ब्लोक ने राम अवतार पचौरी के नेत्र्तव में तीन दर्जन सीटो पर चुनाव लड़ा लेकिन सभी सीटो पर जमानत जब्त हो गई रघु ठाकुर ने पूरी ताकत झोंक दी कुछ भी हासिल नहीं हुआ उमा भारती की जनशक्ति तीसरी ताकत नजर आरही थी लेकिन पांच सीटो पर सिमट गई सपा बसपा ab २०१३ के चुनाव के लिए प्रदेश में राजनितिक दावपेंच चलने लगी सपा ने अपने नेता चोधरी मुनबर सलीम को यूपी से राज्यसभा भेज कर मुस्लिम वोटो पर नजर गड़ाई है बसपा भी पूरी ताकत प्रदेश की राजनीती में झोक रही है लेकिन एक बात साफ प्रदेश में बाम मोर्चा भी पूरी ताकत के साथ मिशन २०१३ के जुटा फॉरवर्ड ब्लोक का मिशन २०१३ में विधान सभा में अपनी उपस्तिथि दिखाना लेकिन कोंन क्या कर पता है यह बक्त ही बताएगा लेकिन कांग्रेस की हालत पतली नजर आरही है
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