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मेरी चाहत

JAN LALKAR
JAN LALKAR
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चाहता हु धरती और गगन से आसमा के तारो से
सूखे हुए पतझड़ से और बसंती बहारो से
किसी ने देखा है मेरे प्रियतम को कही खो गयी है वो
सावन के मोसम में मुझसे दूर हो गयी है वो
पूछता हु ज़माने के इन रंगी नजरो से
बहती हुई नदिया के दोनों किनारों से
किसी ने देखा है मेरे प्रियतम को कही खो गयी है वो
सावन के मोसम में मुझसे दूर होगयी है वो
सूनी – सूनी गली है मेरी अब , उदासी छाई है मेरे दिले महफ़िल में
डूब किया लगा कर ढूंढा कर था तुझे मुहब्बते साहिल में
और पूछा करता था कही खो गयी है वो
देवानंद शर्मा दीपक

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